[ये कविता मासिक संस्कृत पत्रिका सम्भाषण सन्देशः के मार्च २०२४ अंक में प्रकाशित हुई है। हिन्दी अनुवाद सहित यहाँ पढ़ सकते हैं।]
होली का त्यौहार
नीलपीतकृष्णरक्तलेपरञ्जनः
नीले पीले काले और लाल रंगों के लेप के आनन्द वाला त्यौहार
वर्णरेणुकिंशुकोदकादिखेलनः।
गुलाल और टेसू के फूलों के रंग वाले पानी से खेलने वाला त्यौहार।
हृष्टबालकेलिशब्दपूर्णवीथिकः
उत्साहित बच्चों के खेल की ध्वनि से भरी गलियों वाला त्यौहार
वर्णरञ्जितैकरूपगौरकृष्णकः॥
रंग से सने हुए एक से दिखने वाले गोरे और कालों वाला त्यौहार॥
नष्टवैरलब्धमित्रवृन्दवर्धकः
बैर को मिटाने, मित्रों को मिलाने और टोली को बढ़ाने वाला त्यौहार
भङ्गपानमत्तकष्टहीनमुग्धकः।
भांग पीकर मत्त होकर कष्टों से छूटने वाले भोले लोगों का त्यौहार।
ह्रीनिवारको विनोदहासकारकः
लाज हटाने और हँसी ठिठोली कराने वाला त्यौहार
फाल्गुनेषदातपार्कपूर्णचन्द्रकः॥
फागुन की हल्की गर्मी वाले सूरज और पूरे चाँद वाला त्यौहार॥
मोदमानजीववर्धमानपादपः
आनन्द लेते जीवों और बढ़ते पेड़-पौधों वाला त्यौहार
सर्वलोकशोभनर्तुराजशोभनः।
पूरे संसार की शोभा जो ऋतुराज बसन्त है, उसकी जो शोभा है वो त्यौहार।
शूलपाणिनेत्रदग्धजीवितोत्सवः
शूलपाणि भगवान् शिव की तीसरी आँख से जले हुए कामदेव जिसमें दुबारा जीवित हुए वो त्यौहार
अदग्धचक्रपाणिभक्तरक्षितोत्सवः॥
चक्रपाणि भगवान् विष्णु के जलाकर भी न जलने वाले भक्त प्रह्लाद का त्यौहार॥
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